लोकतंत्र एवं राजतंत्र में अंतर जानिए राजकुमारी रुद्राणी लेख भाग 1

 लेख पहला भाग


*राजनीति और प्रचार सामग्री का उपयोग*

भाग पहला 



 *( लेखिका – राज कुमारी- रुद्राणी ,हरियाणा पंजाब )*


राजनीति एक ऐसा शब्द है, जिसका अर्थ है राजाओं कि नीति । राजा वही है, जिसके हाथों में राष्ट्र की डोर होती है। नीति शास्त्र कहता है कि राजा या शासक का कर्तव्य है वो विभिन्न विभिन्न नीतिओं के द्वारा राष्ट्र की रूप रेखा को भव्य करे । किन्तु हमारे लिए तथ्यपर्क यही है कि हम आज के संदर्भ में राजाओं की नीति कैसी है, इसका विष्लेषण करें । चाहे लोकतंत्र हो या राजतन्त्र , प्रक्रिया चाहे कोई भी हो ,राष्ट्र का भविष्य निर्धारण अंततः कुछेक बुधिजीविओं के हाथ में सिमट कर ही रह जाता है। राज तंत्र में राजा लोग ही सर्वश्रेष्ठ है, तो लोक तंत्र में जनता ही सर्वोपरि है। जो अपने प्रतिनिधि चुन कर उन के  हाथों में राष्ट्र सत्ता को सौंप देती है। किन्तु राजतन्त्र और लोकतंत्र दोनों में से ही किसी के पक्ष में भी सफलता का झंडा आज तक नही रखा जा सका है। *इस बात से अप्रसन्न हो कर कई बुधिजीविओं ने यहाँ तक कह डाला है कि :-राजतन्त्र यदि किसी की तानाशाही है तो प्रजातंत्र मूर्खों द्वारा मूर्खों पर उनकी ही अनुमति द्वारा किया गया शासन है।* इतना तीव्र आक्रोश यदि ऐसे शब्द लेकर फूटता है तो निश्चय ही इस के पीछे कोई विचारणीय कारण अवश्य ही रहा होगा। इसका कारण यही है कि विशाल स्तर पर कार्य करते हुए मानव मन जनित दुर्बलताएं अवश्य ही आ जाती है। 

कार्य यदि अच्छे उद्देश्य को लेकर किये जाए किन्तु उनका प्रभाव विपरीत प्रकट हो। तो निश्चय ही उसके नीचे कई गहरे जख्म होते है ।कई खाईंया होती है, जिनको पाटना हम भूल जाते है। और आगे बडने का दुसाहस किया होता है। इन भूलों का परिणाम ही इतिहास की कई दुखद घटनाएं है- उद्धारण पिछली शताब्दी २०वी शताब्दी को ही ले। राजनीति के दृष्टिकोण से भयावह इस समय का फलाफल यह था :-

१...१९१४ में प्रथम विश्वयुद्ध हुआ। जिस में आस्ट्रिया ,सर्बिया ,जर्मनी ,फ्रांस,बेल्जियम ,जापान ,ब्रिटेन ,तुर्की शामिल थे। जर्मनी ने इंग्लैंड पर बम्ब बरसाए, तो ब्रिटेन का साम्राज्य भी सिमट गया। जर्मन में हिटलर उन्न्मादी बना।   

२...रूस में साम्यवादी क्रांति :- लेनिन ने सोवियत संघ बनाया। जिसमे पोलैंड चेच्क्स्लोवाकिया जर्मन का पूर्व भाग था। हंगरी ,चाइना ने भी साम्यवाद अपनाया ।

३...हिटलर का उदय और द्वितीय विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि:- जर्मन में जब हिटलर युद्ध उन्न्मादी बना तो यह युद्ध पोलैंड ,डेनमार्क ,नॉर्वे से लेकर फिलिपींस बेल्जियम ,फ्रांस जापान को भी निगल गया। साम्यवाद यहाँ भी अपनाया गया भंग हो गया ।

४...परमाणु बम्ब विस्फोट ने जापान को बहुत हानि दी। 

५...संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना हुई । 

६...इजराईल की स्थापना और खाड़ी देशों में तनाव हो गया । 

७...भारत की आजादी और विभाजन का दंश हुआ ।

८...जर्मनी का एकीकरण हुआ ।

९...सोवियत संघ में कम्युनिस्ट शासन व्यवस्था की विफलता हुई ।

इतनी बड़ी बड़ी घटनाएँ हुई ,इन सब के पीछे कारण क्या था ? किसी भी प्रकार से शांति और आपसी समन्वय स्थापित करना किन्तु हुआ क्या ? हालत वैसे के वैसे ही रहे, कहीं कहीं तो और भी बदतर हो गयी। राजनीति में ऐसी चाले चली गयी । जिन्होंने ने अच्छी अच्छी व्यवस्थाओं को भी लील लेने का भरसक पर्यास किया । क्या उस समय का जनमानस सजग नही था ? या फिर बुद्धि कुंठित हो गई थी  जो उसे कुछ का कुछ दिखाई पड़ रहा था । निश्चय ही इतनी विशाल धन हानि होने के पीछे कुछ तो कारण रहा ही है। आप या हम इसे किसी एक दिन की गतिविधि का परिणाम तो कह नही सकते ।

यह तो फिर भी हमारा इतिहास है । किन्तु क्या वर्तमान इस से बेहतर है? भविष्य की  झांकी क्या है? आज के परिदृश्य में देखे, तो कुछ भी भिन्न मालूम नही पड़ रहा। कारण ? आपसी मनमुटाव और युद्ध उन्न्माद फ़ैलाने के पीछे समाज में प्रसारित ,प्रचारित की गई मिथ्या धारणाएं, विचारधाराए ही होती है।  गलत बातों को फैलाकर आपसी टकराव को पैदा करना एक आसान हथियार है। साम्प्रदायक तनाव हो या युद्ध का भय सभी के पीछे मानसिक ,बौधिक भय से उपजे विचार ही कारण बनें है। इस सब का  निमित्त बना है –विचारों का प्रचार प्रसार। इसीलिए राजनीति में नीति शास्त्र प्रचार प्रसार के साधनों की क्रिया शुद्धता पर विशेष बल दिया जाता है। पहली परिस्थिति जो संचार साधनों के द्वारा मानव समाज को प्रभावित करती है। वह है :-

१ मानवीय स्वभाव की मर्यादा :-बुधिजीविओं का मानना है कि यदि समाज प्रचार प्रसार तंत्र से प्रभावित होता है। तो प्रचार तंत्र स्वयं भी परिस्थितिओं से प्रभावित होता है। किन्तु प्रश्न यह है कि परिस्थितियां चाहे कैसी भी हो वो किसी जड़ मशीन को प्रभावित नही करती । वह सबसे ज्यादा प्रभावित करती है, चेतना युक्त मानव को प्रत्येक संचार साधन का संचालन करता तो मानव ही है। और प्रत्येक मानव का अपना अपना स्वभाव है। जो मिर्ची के पौधे से उपजा तीखापन है, वो आम के पौधे में नही मिलेगा । इसी तरह पहली परिस्थिति, जो संचार साधनों के द्वारा मानव समाज को प्रभावित करती है। वह है मानवीय स्वभाव की मर्यादा।


*क्रमशःभाग- २ मे आगे*

                                                      *रिपोटर- चन्द्र कान्त सी पूजारी*

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