लेख
*ए जिन्दगी साथ निभा ले जीतेंगे हम*
*लेखिका निवेदिता मुकुल सक्सेना मध्यप्रदेश*
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में कोरोना विषाणु का संक्रमण जहा तेजी से पैर पसार रहा वही ना चाहते हुये भी कई सावधानी से रहने वाले लोग भी इस संक्रमण के घेरे मे आये कई लोगो ने अपने प्रिय रिश्तेदारों को खोया जो काफी असहज था।
कहना बहुत आसान होता हैं सकारात्मक सोचो सकारात्मक बाते करो लेकिन जब स्वयं पर आपदा आती है तो सार्थकता भी जवाब दे जाती हैं।
इन्ही सबके चलते मेरे पतिदेव भी संक्रमित हुये उन्हे "होम आइसोलेशन "मे रखा ओर हम सब भी कॉरेन्टीन हुये।में भी काफी सावधानी रख रही थी । रेपिड़ टेस्ट करवाया नेगेटिव आया तो मन को शांति मिली। क्योंकि सब काम हम पर आ गया था । जहा पतिदेव धीरे धीरे ठिक हो रहे थे वही मुझे रूक रूक कर बुखार आता रहा डॉक्टर ने कहा आर टी पी सी आर टेस्ट करवाइये तो वह भी नेगेटिव आया। बुखार दो दिन मे काफी बढ़ गया फिर सी आर पी टेस्ट हुआ उसमे तेईस प्रतिशत रक्त संक्रमण पाया गया वही बुखार तेज कभी ऑक्सीजन लेवल बहुत कम ।मैं भी होम आइसोलेशन मे थी । पहले ही दिन ऐसा ना चाहते हुये भी लग रहा था शायद अब नही बच पाऊँगी और बहुत रोना आ रहा था बच्चे और घर मे सब घबरा गये। खैर सबके प्यार और स्नेह ने वह अल्पकालिक अवसाद से बाहर निकाल दिया। दोनो बच्चे थोडी थोडी देर मे आते और दरवाजे पर खडे होकर हँसी मजाक करके जाते साथ ही बेटे ने जल्दी ही मेरे पसंद की किताबें भी मँगवा दी । पतिदेव मेरे कारण वापस मेरे साथ मेरे कक्ष में ही आइसोलेशन मे आ गये क्योंकि उन्हे लग रहा था मे फिर से अवसाद मे ना आ जाऊ। खैर समय निकल गया और बहुत कुछ सिखा गया। हालांकि नित्य योगाभ्यास, प्रकृति के मध्य ज्यादा रहना शुरु किया जिनके परिणाम पहले से ज्यादा लाभकारी रहे व जल्दी स्वस्थता की ओर ले आये।
कुछ पुराने गाने भी सुनना अच्छा लगता था,,,ए जिन्दगी गले लगा ले। फिर ट्रेक पर धीरे धीरे गाडी आ रही अब।
ऐसे मे स्थिति सम्हाली यू ट्यूब पर कोविड रिस्पोंस टीम जो सामजिक ,धार्मिक व अन्य संगठनो के सहयोग से वर्तमान मे जन जन मे व्याप्त इस भय , अवसाद , मनोबल टूटना जैसी मानसिक स्थितियों से। जिनसे व्यक्ति गम्भीर स्थिति मे ना होते हुये भी इन सबका शिकार होकर मौत के कागार पर आ खड़ा होता हैं क्योंकि यह बिमारी शरीर से ज्यादा मष्तिष्क पर हावी होती हैं।कोविड रिस्पोंस टीम के सहयोग से "हम जितेगे" ,"पॉजिटिवीटी अनलिमिटेड " में आयोजित व्याख्यान श्रंखला मे प्रख्यात बुद्धिजीवियों द्वारा कोरोना काल मे कैसे मनोबल बढ़ाया जाए व कैसे जिन्दगी मे आ रही इस जाद्दोजहद से जीत कर कैसे आगे बढें को भी सुना। इस श्रंखला में राष्ट्रिय स्वयं सेवक सरसंघचालक श्री मोहन जी भागवत ,संत श्री श्री रवीशंकर जी, श्री अजीज प्रेम जी, संत श्री विधा सागर जी, पद्म विभूषित सोनल मानसिंह जी, पूजनीय शंकराचार्य श्री विजयेंद्र सरस्वती जी,पद्म श्री निवेदिता रघुनाथ भिड़े जी आदि वक्ताओ ने प्रेरक व्याख्यान दिए जो ऊर्जा से भरपूर जीवन जीने का संदेश दे गये।
मुख्य वक्ताओ ने बडी सरलता व सहजता के साथ अनुभव करवाया कि जीवन बडा अनमोल हैं और जब तक हमारा प्रभु का दिया जीवन हैं उतना हमे जीना ही है क्योकि अभी बहुत काम बाकी हैं।
वही कोरोना मे लॉक डाउन के चलते इसमे भी कई सार्थक पहलू हमसे जुडे जैसे परिवार मे सभी सदस्यो के साथ रहना,खाना व मिल जुलकर कार्य करना व अन्य सार्थक कार्य परिवार के साथ हुये।
भारत मे कोरोना काल मे ये भी देखने मे आया है,कि भारतीय संस्कृति के अनुरूप हम सभी कही न कही वापस सनातन संस्कृति से फिर जुड रहे हैं जैसे आध्यात्म, योग, मन्त्रोंपचार ये सभी एक बेहतर भविष्य की और अग्रसर होने का उत्तम संकेत दे रहे हैं। बहुत सारे राष्ट्रवादी युवा स्वयंसेवक अपने स्वयम की रक्षा की सावधानियों के साथ कोरोना पीड़ित रोगियों,मृतकों,शोकसंतृप्त परिवारों ओर जरूरतमंदो की सकारात्मकता के पूर्ण भाव से सेवा कर रहे उन्हें नमन है।
वही खासकर हमारी युवा पीढ़ी जो इस देश के कर्णधार है उनका मनोबल बना रहे व स्वर्णिम भविष्य का सपना हर हाल मे संजोये रहे । क्योंकि हमारे कर्मो से जुडे हमारे स्वप्न व हमारी आकांक्षा होती हैं और आज कई युवा शिक्षा व रोजगार के अभाव से जूझ रहे हैं व कुण्ठाग्रस्त व अवसाद में आकर अपना समय व्यतीत कर रहे है । जबकि उन्हे ये समझना होगा स्वामी विवेकानन्द जी ने युवावस्था में देश, विदेश आदि कई जगह भूखे प्यासे रहकर अनेको बार समय काटा लेकिन रुके नही। अपने लक्ष्य को साधते हुये स्वामीजी ने भारत वर्ष मे नवनिर्माण की सीढ़ी रखी जिस पर हर युवा जन जागृति के साथ मानवीयता, करुणा,सेवा के साथ राष्ट्रहित मे अपना योगदान दे सके।
पासिटिविटी अनलिमिटेड का अर्थ ही यही हैं सकारात्मकता की अपार सम्भावनाएँ हमारे साथ मौजुद हैं। जरुरत है ये समझने की कि किस ऊर्जा के साथ हम इस कोरोना संक्रमण के विकट समय के साथ जीवन जीने मे सहायक हैं।
पदम्विभूषित डॉक्टर निवेदिता भिड़े के शब्द
रोना रोने से कभी ना कोई जीता है,
जो विष धारण कर सकता है,
वह अमृत को पीता हैं।।।। सत्य है।
पोसिटीवीटी अनलिमिटेड मे व्याख्यान के दौरान इन पँक्तियो का ज्ल्लेख करते हुये कहा कि जीवन मे संघर्ष से लड़ते हुये इन संघर्षों को जीवन्त ना करो बल्कि संघर्षो से जुझ कर इनसे आगे निकलो।
वही परम् पूजनीय भागवत जी ने कोरोना से जुझ रहे वह लोग जो अब नही रहे या जो गम्भीर स्थिति मे आ गये थे वह जीवन से मुक्त हुये उनके इन्ही शब्दो की सकारात्मकता को कुछ समाचार पत्रो ने नकारात्मक रुप से इसलिये छाप दिया जिससे जन सामान्य मे उनके प्रति हीन भावना उत्पन्न कर सकें। अत्यधिक खेद हुआ जहा एक जूट होकर इस महामारी से लड़ने की क्षमता उत्पन्न कर रहे वही कुछ असामाजिक तत्व शब्दो से भ्रम फेला रहे।
क्या ये ही मानवीय दृष्टिकोण हैं ?
श्री मोहन जी भागवत ने आज के सत्य को हमारे समक्ष रखकर ही इस महामारी से व्यवहारिक तौर पर इससे बाहर निकलने की बात कही।
आखिर नेगेटिव क्या हैं? एक होता हैं सच जो काफी कटु होता हैं और समझ से परे व एक नेगेटिव जो मनोबल तौड दे। और पॉजिटिव वह जो हमारे स्वयं के समाजिक दृष्टिकोण से हितकारी हो। तो स्वाभविक हैं सच मे जीते हुये मनोबल को बनाये रखना जो हमारा व समाज का उद्धार करे , व युवा पीढ़ी मे भी नवनिर्माण की अलख जगा कर देश के विकास मे सहयोग स्थापित करे।
जिम्मेदारी हमारी
सकारात्मकता के तत्व को पहचानने की आवश्यकता है शब्दो मे उलझ कर सकारात्मकता को नकारत्मकता में परिवर्तित न होने दे।समय और परिस्थितियां आव्हान कर रही सकारात्मकता की ओर इस यज्ञ में अपनी आहुति अवश्य दे। निश्चिंत रहे अंधरे के बाद उजाला आता है सुखमय सांस्कृतिक समय नवाचार के साथ आने वाला है इसका स्वागत करने हेतु तैयार रहे।
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामया
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मां कश्चिद दुख भागभवेत ।
प्रस्तुति चंद्रकांत सी पूजारी