1857 क्रांति के नायक दादा शाहमल सिंह तोमर को उनके पूण्यतिथि पर नमन 🙏🙏🙏
10 मई 1857 को मेरठ से शुरू हुई क्रांति की आग बागपत और बड़ौत क्षेत्र में भी फैली। क्रांतिकारी शाहमल के नेतृत्व में हजारों जाटों ने बड़ौत तहसील पर हमला बोलकर सरकारी खजाना लूट लिया था बसोद की लड़ाई में दादा शाहमल18 -21जुलाई को शहीद हो गए थे उनका बलिदान दिवस कुछ 18 को मानते है जबकि अंग्रेजी पुष्टि के अनुसार 21 को मनाया जाता है
दैनिक जागरण ने एक अंग्रेजी दस्तावेज के हवाले से लिखा है की -
1857 की क्रांति में अंग्रेजी हुकूमत की चूलें हिलाने वाले शहीद दादा शाहमल इतने बहादुर थे कि उनके शव से भी फिरंगी कांप उठे थे। बाबा को उठाने की हिम्मत न जुटा पाने वाले कई गोरों को उनकी ही सरकार ने मौत के घाट उतार दिया था।
#दादा शाहमल की वीरता की #प्रशंसा तो उनके #विरोधी #अंग्रेजो ने भी की है
#डनलप जो कि अंग्रेजी फौज का नेतृत्व कर रहा था, को शाहमल की फौजों के सामने से भागना पड़ा. इसने अपनी डायरी में लिखा है -
"चारों तरफ से उभरते हुये जाट क्रांतिकारी नगाड़े बजाते हुये चले जा रहे थे और उस आंधी के सामने अंग्रेजी फौजों का जिसे 'खाकी रिसाला' कहा जाता था, का टिकना नामुमकिन था."
एक #अंग्रेजी सैन्य अधिकारी ने उनके बारे में लिखा है कि
एक जाट (शाहमल) ने जो बड़ौत परगने का गवर्नर हो गया था और जिसने राजा की पदवी धारण कर ली थी, उसने तीन-चार अन्य परगनों पर नियंत्रण कर लिया था। दिल्ली के घेरे के समय जनता और दिल्ली इसी व्यक्ति के कारण जीवित रह सकी।
#अंग्रेज #कमांडर #बिलियम द्वारा लिखी गई 'आंखों देखी' पुस्तक में बताया गया कि गोरों की फौज घंटों तक शाहमल के शव से भी डरती रही। शहादत स्थल पर आये हुक्मरानों ने अपने सैनिकों का यह व्यवहार देख उन पर ही गोलियां बरसा दी थीं।
अंग्रेजी अधिकारी #हेविट ने लिखा है -
कि दिल्ली की उभरती फौजों को रसद जाना कतई बंद हो गया और मेरठ के क्रांतिकारियों को मदद पहुंचती रही.
#इलियट ने १८३० में लिखा है कि पगड़ी बांधने की प्रथा व्यक्ति को आदर देने की प्रथा ही नहीं थी, बल्कि उन्हें नेतृत्व प्रदान करने की संज्ञा भी थी. शाहमल ने इस प्रथा का पूरा उपयोग किया. दादा शाहमल गावों की नई फौज बनाकर मैदान में उतर पड़ा. अंग्रेजो के दिलो में भय पैदा कर दिया।
जय जाट पुरख
जय यौद्धेय