एक रूसी सैनिक का धैर्य और संस्कार क्या युद्ध क्षेत्र में सही
है यह धैर्य और संस्कार सामाजिक दृष्टि से युद्ध की स्थिति से पहले की बात होती है आगर सभी समझदारी और प्रयास फेल हो जाते हैं और युद्ध ही अनिवार्य होता है उस अवस्था में सैनिक का धैर्य मात्र युद्ध में खड़े होने के लिए होना चाहिए ना के सामाजिक कुरीतियां उस समय हृदय की कमजोरी सैनिक को युद्ध की पूरी तस्वीर को पलटने में सहयोगी हो सकती है इसलिए सैनिक को चाहे बच्चा बूढ़ा औरत कोई भी क्यों ना हो सभी को दुश्मन की दृष्टि से देखना चाहिए जब तक के युद्ध में विजय हासिल ना हो जाए जीत हासिल के बाद अपनी नीति के अनुसार चाहे सामाजिक दृष्टि से कैसा व्यवहार करें परंतु युद्ध क्षेत्र में जैसा रूस का सैनिक वह वार कर रहा है यह सामान्य जनों के लिए अच्छी बात हो सकती है परंतु युद्ध नीति के लिए यह रूस के सैनिकों की कमजोरी दिखा रहा है ऐसे कमजोर सैनिकों को भावनात्मक रूप से कभी भी प्राप्त किया जा सकता है युद्ध क्षेत्र में सैनिक के अंदर भावनात्मक कमजोरी नहीं होनी चाहिए भगवान कृष्ण ने महारथी अर्जुन को गीता में यही उपदेश दिया था जो आज भी पारसंगीक। यहां पर तालिबानी बिल्कुल सही युद्ध नीति को इस्तेमाल करते हैं यही नीति भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता में कही थी दुनिया के महा नितिज्ञ चाणक्य नीति यही संदेश दिया था और शकुनि तो इससे भी चार कदम आगे की बात कहता था
इस रशियन की जगह तालिबानी होते तो क्या हाल कर देते बच्ची का..
एक छोटे से युक्रेनी बच्चे के अंदर देशभक्ति का कितना जज्बा भरा हुआ है,, ये अलग बात है की अपन यूक्रेन के खिलाफ है क्यूंकि वो हमेशा अंतर्राष्ट्रीय पटल पर हमारे खिलाफ रहा है