आलेख
शीर्षकबेटा पढ़ाओ संस्कार सिखाओ
समाज बचाओं
लेखिका स्नेहा दुधरेजीया पोरबंदर गुजरात
"बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना"
(BBBP) महिला एवं बाल विकासमंत्रालय ,स्वास्थ्य मंत्रालय ,परिवार कल्याण मंत्रालय एवं मानव संसाधन विकास की एक संयुक्त पहल पर " बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना" की शुरुआत 22 जनवरी,2015 को की गई ।
इस योजना की शुरुआत के पीछे बेटी को संरक्षण देना है।हमारे समाज में लड़का और लड़की में भेद करना कोई नई बात नही है।प्रत्येक समुदाय, प्रत्येक समाज और देश के सभी क्षेत्रों में बेटा और बेटी को लेकर एक ही राय है कि,बेटा बुढ़ापा का सहारा बनेगा और बेटी
शादी करके पराये घर चली जायेगी ?
समाज की इसी विकृत सोच ने बेटी और बेटा को लेकर पारिवारिक स्तर पर ही भेद करना शुरू कर दिया।
बेटी घर की चारदीवारी में कैद हो गई और बेटा घर के बाहर स्वच्छंद विहार करने लगा ,अपने आप को समाज में सर्वेसर्वा समझने लगा जिसका परिणाम हमारे सामने है?जबकि आधी आबादी स्त्री है और आधी आबादी पुरूष।
हमारे समाज में बेटा और बेटी के बीच भेद सम्बन्धी सोच ने ,लड़कियों से पढ़ने का हक छीन लिया,घर से बाहर निकलने का हक छिन लिया ,किसी पुरूष के बराबर खड़ा तक होने का हक छीन लिया ?
औरत हमेशा पुरूष के पीछे पीछे चलनेवाली मूक वस्तु बन गई, जिसका इस्तेमाल पुरूष अपनी सोच के अनुसार करने लगे?
हद तो तब हो गई जब तकनीकी विकास ने लड़कियों को पेट में ही मार देने की विकृत सोच समाज में फैलने लगी जिसके परिणाम स्वरूप ,लड़का और लड़की के बीच का लिंगानुपात काफी कम हो गया??
भारत की बढती जनसंख्या के बावजूद लड़कियों का अनुपात घटता जा रहा था ।भारत की 2001 की जनगणना के अनुसार, हर हजार लड़कों पर 927 लडकियाँ थी, हालांकि 2011 की जनगणना में ये आंकडें 943 लड़कियों पर आ गया।
बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ योजना ने इस दिशा में जागरूकता तो अवश्य फैलाई हाल के आकड़ो में प्रति हजार लड़को पर लगभग एक हजार बारह लड़कियां है।सरकार के द्वारा किया जा रहा प्रयास बेटियों के लिए कारगर साबित हो रहा है परंतु समाजिक स्तर पर हमारे समाज में काफी सुधार की जरूरत है।
लड़का और लड़की में समाजिक भेद के कारण आम लोग ही बेटे को महत्व देते है,दिमाग में हरसमय यह बात डालते रहते है कि,"बेटा है तो सारे कार्य करने के लिए आजाद है,क्योंकि, बेटा का स्थान हमेशा बेटी से ऊपर है?"
जिसके दुष्परिणाम स्वरूप बेटी समाज में असुरक्षित हो गई, घर में भी असुरक्षित हो गई, क्योंकि बलात्कार के ज्यादातर मामले घर में ही होते है , करीबी रिश्तेदारो के द्वारा ही होते है?
वे पुरूष होते है किसी का बेटा होता है इसलिए बात को गौण कर दिया जाता है ,लड़की को चुप करा दिया जाता है ?बलात्कार, छेड़छाड़ ,एसिड अटैक आदि कुकृत्य लड़को का समाज के द्वारा मन बढ़ाने का ही नतीजा है ?अभी कुछ दिन पहले की गुजरात सुरत की एक दुखद घटना ग्रीष्मा मर्डर केस है ?
लड़के का ग्रीष्मा का प्रेम निवेदन अस्वीकार करने के बाद लड़के ने उसकी गर्दन काट डाली?
एक दिन बाद गुजरात में फिर इस घटना से मिलती जुलती एक और घटना हुई जो ह्रदय विदारक है।
एवं इस बात की ओर इंगित करता है कि, यदि समाज को सही दिशा देना है तो ,अब बेटो को सही दिशा देना होगा।बेटा और बेटी के फर्क को मिटाना होगा।
लड़को के द्वारा किये जा रहे अपराध को कम करने के लिए बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ अभियान के साथ-साथ
" बेटा पढ़ाओ बेटा ,बेटा, पढ़ाओं संस्कार सिखाओं "
अभियान अब चलाना होगा। यह अभियान बेटो के लिये होना चाहिये।
बेटो को लेकर, तहसील, जिलापंचायत, व राज्यों की सरकार व केन्द्र सरकार के संबंधित विभाग को इस सम्बंध में भी आत्म चिंतन करना पड़ेगा ।
बेटो में संस्कार तथा बेटी के प्रति सम्मान का भाव लड़को के दिमाग में आए इसके लिए विविध कार्यक्रम स्कूल कोलेज में, गांव में ,शहरों में ,व विविध संगठन व संस्थाओं में होने चाहिए।
जनजागृति अभियान के तहत बेटा पढ़ाओ बेटा बचाओ बेटा पढ़ाओ संस्कार सिखाओ संस्कार सिखाओ समाजबचाओ ,अभियान लाना चाहिए ।
वर्तमान समय की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, आज हर दिन ऐसी ऐसी घटनाएं सामने आती है जो शर्मशार करती है?इन सब का कारण आजकल के लड़को कहीं ना कहीं तो अच्छे संस्कार की कमियां हैं ।
बेटा और बेटी में फर्क के कारण बेटे के परवरिश में ,मां बाप से, परिवार से कमी रह जाती है ?बेटे को अनावश्यक अंहकार पुरुष होने का भर दिया जाता है?
जिसके बाद मां बाप के साथ, कुल और समाज का भी और गांव के साथ साथ राज्य का भी नाम बदनाम होता है। आए दिन वारदात का ग्राफ बढ़ता ही जा रहा है ?यह बड़ी गंभीर समस्या दिन-ब-दिन बनती जा रही है ।मां बाप,परिवार ,समाज, सरकार और प्रशासन के लिए भी आज उदंड लड़को को संभालना मुश्किल
हो रहा है।
बेटा या बेटी में फर्क नही होना चाहिये।बेटा बेटी एक समान है, कहने को तो बहुत बड़ी बड़ी बाते लोग करते है पर, ये समानता वास्तव में कही दिखायी नहीं देता है, क्योंकि हमारे समाज में पुरुषों को ही महत्व दिया जाता है?कोई भी स्त्री चाहे वो घर मे हो या कार्यालय में हर जगह पर पुरूषो का ही वर्चस्व होता है।
हर जगह पुरुष यही चाहता है कि, महिलाएअं उनके अंदर काम करे।फिर बेटा बेटी ,स्त्री पुरुष की बराबरी वाली सोच कोइ मायने नही रखती है?
चाहे स्त्री किसी भी विभाग में काम करे उसे हंमेशा दुर्बल ही समझा जाता है?
बात यहां तक सिमित नहीं है अगर किसी लड़की का बलात्कार होता है तो ,वजह उसके छोटे कपडे बन जाती है ,या फिर रात को बहार जाना वजह बन जाता है।अगर किसी लड़की की हत्या बलात्कार के कारण हो जाये तो , सबलोग स्टेट्स पर लगाते है, या मोमबती लेकर निकल पड़ते है इंसाफ की बात करने,इंसाफ दिलाने ? फिर कुछ ही दिनो में सब भुल जाते है।मुझे नही लगता की ये सब करके बलात्कार जैसी घटनाओं को रोका जा सकता है।
बचपन से ही लड़कियों को मान मर्यादा की बातें सिखायी जाती है ।ये बाते सही मायनों में तो बेटो को भी सिखानी चाहिये। अगर बचपन से ही बेटो को संस्कार सिखाएं जाएं तो शायद ये सब कम हो जाये।आजकल हम बहुत सी खबरे देखते है कि, बहुत साल पुरानी शादी भी टुट रही है।
क्या ये रिस्ता सिर्फ पत्नी कि वजह से ही टुटता है ?
हर बार ऐसा नही होता है।ये बात सिर्फ पतिपत्नि के रिस्ते तक सिमित नही है ।आजकल जैसे एक ट्रेंड चल रहा है कि, गर्लफ्रेंड सब को बिंदास चाहिये पर पत्नी संस्कारी चाहिये?तो क्या ये खिलवाड़ नही ?
प्यार किसी के साथ शादी किसी के ये क्या यह सही है। इस सोच में संस्कारो की कमी नजर नही आती?
एक आदमी दो शादीयाँ करके भी बेचारा बना रहता है और उसी जगह कोइ औरत करती है तो ,उसे सारी उम्र ताने है सुनना पड़ते है।
शायद मेरी ये बात चुभ सकती है ,पर ये सच है ,आप को नही लगता की सोच में बदलाव लाने की जरुरत है ?कोई पति अगर अपनी पत्नी कि मदद करता है तो उसे भी हीन भाव से देखा जाता हैं ये तो गर्व की बात होनी चाहिए, वो एक औरत का सम्मान करता है।कही से तो शुरुआत करनी ही होगी।
सोच बदलेगी तभी तो समाज में बदलाव हो पायेगा।ये हर मातापिता की जिम्मेदारी है कि, अपनी बेटी के साथ बेटों को भी संस्कार का पाठ पढ़ाय ,संस्कार सिखलाय। ये बात कड़वी जरुर है पर सच है। बेटों को संस्कार कि जरुरत है ।बेटी के साथ-साथ बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ,अभियान के साथ-साथ
" बेटा पढ़ाओ, बेटा बचाओ संस्कार सिखाओ अभियान का होना जरूरी है।"साप्रतसमय की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए।
यदि युवा वर्ग समझने लगेगा कि संस्कारों का बन्धन देश की प्रगति के लिये अत्यन्त आवश्यक है तो ,देश की बेटी स्वतः सुरक्षित हो जाएंगी ।
लक्ष्मणगढ़ (सीकर)के निवासी विनीत सोनी ने अपने विवाह के आमंत्रण पत्र के माध्यम से" बेटा पढ़ाओ-संस्कार सिखाओ, अभियान का संदेश दिया जो अत्यन्त सराहनीय है। सोनी ने बताया कि "अगर बेटा पढ़ा-लिखा शिक्षित एवं संस्कारी होगा तो बेटियां स्वत: ही सुरक्षित हो जाएंगी। यह अभियान आज के समाज की आवश्यकता बन चुकी है। "
उन्होंने एक नई पहल को प्रारंभ करके समाज के हित में बहुत सुन्दर कार्य किया है। यह अभियान युवाओं को आकर्षित कर रहा है। "
विनीत सोनी की तरह ही आज पूरे समाज को अपनी सोच बदलनी होगी तभी समाज में बदलाव आ सकता है,समाज सुधार हो सकता है।
और विनीत सोनी की यह पहल के लिए में लेखिका स्नेहा दुधरेजीया पोरबंदर गुजरात से साधुवाद करती हूं जय श्री सोमनाथ महादेव।