प्यारी बेटिया किसे मांने अपना घर लड़की का घर लेखिका दीप्ति डांगे मुंबई



लड़की का घर



लेखिका दीप्ति डांगे, मुम्बई


एक कंपनी मे एक महिला के इंटरव्यू के दौरान इंटरव्यू लेने वाले ने पुछा की अगर तुम्हारा चयन हो जाता है तो तुम अपने वेतन का क्या करोगी? महिला ने जवाब दिया "अपना घर बनायुगी।"

ये एक वाक्य  नही बल्कि सदियों से चली आ रही वो कड़वी सच्चाई है जो महिलाएं सहती आ रही है। जिस देश मे देवी को पूजा जाता है उस देश मे आज भी बेटियों को 'पराया-धन' या दायित्व समझा जाता है। जिसका अर्थ है की बेटी जहां पैदा होती है खेलती है वो घर उसका  ‘अपना’ नहीं बल्कि उसके पति का घर या ससुराल माना जाता है। इक्केसवी सदी मे भी आज हमारे देश मे ज्यादातर बहुयो ओर बेटियो की स्थिति बहुत अच्छी नही है। माँ के घर मे वो एक दायित्व समझ कर पाली जाती है।कुछ हद्द तक लोगो की सोच में परिवर्तन आया है और माता-पिता अपनी बेटी से बहुत प्यार कर रहे है उनको सम्मान, अधिकार और स्वतंत्रता भी मिल रहा है  मगर वो भी समय समय पर बेटी को ये अहसास कराते रहते है कि वो उस घर में मेहमान है।एक दिन उसको दूसरे घर जाना है।

आज भी ज्यादातर बेटे और बेटियों मे भेदभाव होता है।बेटा पैदा होने पर खुशिया मनाई जाती है।क्योंकि ये माना जाता की बेटी तो पराया धन होती है वंश तो बेटे से चलता है जिसके चलते कई घरों में तो बेटियों को पैदा होने से पहले ही मार दिया जाता है या पैदा होने के बाद फेंक दिया जाता है।ये ज्यादातर घर के बड़े बूढ़े करते है।

मेरी एक दोस्त ने जब बेटी को जन्म दिया तो उसके सास ससुर ने एक महीने तक उस बच्ची का चेहरा तक नही देखा। और कुछ समय बाद उसके परिवार को घर से निकाल दिया। जब बड़े शहरों में लोगो की सोच ऐसी है।तो गांव कस्बो और छोटे शहरों मे बेटियो के साथ कैसा बर्ताव करते होंगे। ये सच है कि औरत ही औरत की दुशमन होती है और बेटी होने पर सबसे ज्यादा तकलीफ घर की बुजुर्ग औरतों को होती है। समय समय पर वो बहु को बेटी पैदा करने पर ताना देते रहते है और बच्ची का बचपन छीन उस पर दायित्व डाल देती है कि और हमेशा उसको पराए घर जाना है बोलकर मानसिक वेदना देती रहती है।

ये बुजुर्ग ये भूल जाते है वो भी कभी बेटी और बहू थी। और अब वो भी बेटी की माँ भी है। घर वाले हर बात पर उसको टोकते रहते है, उसकी इच्छायों का दमन करना। बिना ये अहसास के वो भी एक इंसान है। और लड़की उस पीड़ा को सहती है और अपनी भावनायों को दबाने लगती है।इसी के चलते कई बार कोई बाहर वाला थोड़ा सा प्यार, सहानभूति दिखाकर उसका फायदा उठाता है और वो गलत कदम उठा लेती है जिससे उसकी जिंदगी भी बर्बाद होती है और परिवार को अपमानित होना पड़ता है। या धीरे धीरे वो इस सोच के साथ बड़ी होने लगती है  ससुराल ही वही उसका असली घर है, और वो अपनी इच्छाये वही पूरी करेगी। एक दिन उसका कन्यादान कर दूसरे घर भेज देते है। यह वो अपने माता पिता को छोड़ अपने घर का सुनहरा सपना लेकर पति के घर आती है और यहां नये लोग ,नया घर,अलग रहन सहन,रीति रिवाज, खान पान सब कुछ अपने घर से अलग पाती है 

 जिसके अनुसार वो ढलने की कोशिश करती है लेकिन ससुराल और पति को लड़की से बहुत अपेक्षा होती है कमाने वाली घरेलू लड़की हो और ढेर सारा दहेज़ भी साथ लाये।वो अपना वेतन ससुराल वालों को दे,घर पर सारा काम करे, और कुछ बोले नही। ज्यादातर बहु को इतना भी अधिकार नही होता कि जरूरत के समय वो अपने वेतन से कुछ धन अपने मायकेवालों को दे सके। और जब वो उसका विरोध करती है या तो उसको मारा जाता है या मानसिक यातनाये और ताने दिए जाते है और कुछ तो इतने घटिया लोग होते है कि लड़की को पागल साबित कर तलाक ले लेते है या जला देते है।वो समझ नही पाती उससे कहाँ गलती हुई।क्या यह उसका अपना घर है? या माता पिता का जो रूढ़िवादी सोच के चलते शादी के समय अपनी बेटी को हिदायत देते है ‘डोली में जाना और अर्थी में आना’ इसका  मतलब चाहे तुम्हारे शरीर को कितनी ही मार खानी पड़े, चाहे तुम्हारे मन को कितने ही ताने सहने पड़े, चाहे तुम्हारी आत्मा को पल पल घुट घुट कर मरना पड़े, लेकिन अर्थी में ही आना, क्योंकि घर की शांति और सुख बनाएं रखना तुम्हारी ज़िम्मेदारी है,थोड़ा सह लो सब ठीक हो जाएगा, लेकिन घर वापस मत आना नही तो समाज क्या कहेगा? जब वही ससुराल वाले जला देते है तो मायकेवाले पुलिस मे ससुराल वालों पर इल्जाम लगाते है। क्या सिर्फ ससुरालवाले जिम्मेदार है मायकेवाले नही?जिस समाज के डर से माता पिता अपनी बेटी की जिंदगी बर्बाद कर देते है वो समाज क्या उनकी बेटी को वापस ला सकता है या उस लड़की की परेशानी दूर कर सकता है। कभी नही? जिन्होंने झूठी शान और समाज में झूठी इज्जत के कारण अपनी बेटी की बलि चढ़ा दी। उसको इतना काबिल नही बनाया की वो खुद इन सबका सामना कर सके।

अपना घर तो वो होता है जहां आजादी हो, न कोई रोकने टोकने वाला।जब जो करना हो करो..उसके उलट मायके मे हर समय बेटा और बेटी में फर्क करना और अहसास कराते रहना उसको तो पराए घर जाना है और छोटी से उम्र मे उसका बचपन छीन कर घर की जिम्मेदारी लाद देना और ससुराल में हर काम दूसरों की मर्जी से करना ।सिर ढको,ऐसे मत बैठो, ऐसे मत हंसो,धीरे बोलो,जल्दी खाना खत्म करो….ये मत करो वो मत करो..

हमारे एक पड़ोसी है उनकी पत्नी जिसकी शादी छोटी सी उम्र मे कर दी। वो कमाती है पूरा घर संभालती जैसे ही उसका वेतन आता है पति पूरे हक़ से ले लेता है, एक बार उसके छोटे भाई को कुछ धन की जरूरत थी तो उसने अपने पति से पूछा तो वो बोला बहन से पैसा मांगते उसको शर्म नही आती और खुद अपनी माँ को जाकर पैसा देता है जबकि माँ खुद भी कमाती और वो कुछ बोलती है तो कहता है अपने घर चली जाए तुम जैसे बहुत मिल जाएगी।वो समाज और परिवार के दवाब के कारण घर भी नही जा पाती।बस सारे दुखो को सहकर और बच्चों के लिए जी रही है।


एक लड़की पैदा होने से मरने तक बेटी का, बहू का, पत्नी का पात्र निभाने के बाद वो दुनिया का सबसे कठिन और सबसे सुखमय पात्र को निभाते हुए मां बनकर पति के परिवार को आगे बढ़ाती हुए परिवार की सुरक्षा, खुशहाली और अपने बच्चों का उज्जवल भविष्य देते हुए सिर्फ कर्तव्य निभाती रहती है। कभी भी अपने अधिकार नही मांगती। मांगे भी किससे मायकेवालों से या ससुराल वालों से। लेकिन धीरे धीरे अब समय बदल रहा माता पिता के लिए बेटियां दायित्व या बोझ नही बल्कि उनकी परिया बन गयी है जो वही प्यार, सम्मान, मौका पा रही है जो बेटों को दिया जा रहा है। आज लड़किया न केवल आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो रही है बल्कि मानसिक रूप से भी आत्मनिर्भर हो रही है। वो अब अपने भविष्य, कैरियर, शादी के लिये खुद फैसला ले सकती है।दूसरी तरफ पुरुषों, समाज और ससुराल की सोच बदली है लेकिन ज्यादा नही बहुत कम पति ऐसे है जो पत्नी को उसका अधिकार देते है उसके साथ मिलकर घर और बाहर की जिम्मेदारी मिलकर उठा रहे है। नही तो ज्यादातर पति जिम्मेदारी बांटना नही चाहते और सिर्फ अधिकार जताते  हुए बार बार यही अहसास कराते है कि ये घर उनका है। 

पत्नी नौकरी भी करे  घर, बच्चे, पति सबकुछ संभाले। लड़की कितनी भी आत्मनिर्भर क्यों न हो जाये लेकिन हमारे समाज की सोच वही पुराने मापदंडों पर चल रही है की लड़की के लिये सबसे पहले पति ओर सास ससुर कि इच्छाएँ, भावनाएँ तथा खुशी सबसे ऊपर है जो उसको नौकरी के साथ साथ निभानी होगी।जिसके कारण आज बहुत सी लड़किया शादी न करने का फैसला ले अपनी ज़िंदगी अपनी शर्तों पर आजाद रहकर जीना पसंद कर रही या तलाक ले रही जिसके कारण सिंगल मदर या लिव इन का रिलेशन बहुत बढ़ गया है। ऐसे में शादी उनके लिए एक लक्ष्य या ज़रूरी काम जैसा नहीं लगता। क्योंकि वो इतनी सक्षम हो चुकी है अपना घर खुद बना अपनी जिंदगी स्वतंत्र होकर जी सकती है।

 आज की युवा सोच पर केरल हाई कोर्ट जस्टिस मोहम्मद मुस्तक और सोफी थॉमस की बेंच ने शादी के नाम पर समाज में चल रह 'खिलवाड़' पर गंभीर चिंता जाहिर करते हुए कहा युवा पीढ़ी शादी के बंधन में बंधने की बजाए लिव इन रिलेशन में रहना ज्यादा पसंद कर रहे हैं। वह शादी से भाग रहे हैं।समाज में यूज एंड थ्रो का कल्चर बढ़ता जा रहा है।जिसके चलते देश की संस्कृति भी खराब हो रही है। 

सरकार ने भी घरलू हिंसा, कन्या भ्रूण हत्या, दहेज उत्पीड़न जैसी कुरीतियों को खत्म करने और दूसरी तरफ जायदाद मे बराबर का हिस्सा देने जैसे कई कानून बनाये है। एक तरफ संस्कारहीनता के चलते कुछ लड़कियां द्वारा इनका दुरुपयोग भी हो रहा है और वो ससुराल वालों को धमकी देती है और झूठे केस डाल देती है। और दूसरी तरफ महिलाएं डर और मजबूरी, और इज्जत के भय, आर्थिक स्थिति के कारण कानून के पास भी नही जा पाती।

आज के दौर मे माता पिता और समाज को समझना होगा कि अगर बेटे घर के वंश बेल हैं।तो लड़कियां वंश कोष हैं, वंश लतिका, वंशावली हैं।

अगर बेटे से वंश वृक्ष का निर्माण होता हैं,तो बहु रूप में एक बेटी ही वंश का सृजन और उत्पत्ति करती हैं। आज बड़े बुजुर्गों को माता पिता बन कर बेटी और बेटे मे फर्क न कर दोनों को आजादी के साथ समान अधिकार, संस्कार और कर्तव्य का बीजारोपण करना होगा। बेटा हो या बेटी दोनों को प्रेम, उदार, स्नेह, उदारता, सेवा, सहष्णुता, परस्पर एक दूसरे के लिए आदरभाव सिखाना चाहिये और सास ससुर बनकर इन भावों रूपी वृक्ष को काटने की बजाए उसका पोषण करना चाहिये और नई बहू का स्वागत दिल खोल कर उसके नजरिया ओर इच्छा का सम्मान करना चाहिये। जिससे बहु भी उस घर को अपना घर समझ कर उसको दिल से अपनाए।

 बड़ो के प्रति सम्मान श्रद्धा, छोटो के प्रति प्रेम स्नेह किसी भी परिवार का मेरुदंड होता है। बच्चों और माता-पिता में एक परिपक्वता और आजादी बहुत जरूरी है। एक दुसरे कि जरुरतों को लेकर सामंजस्य होना बहुत जरूरी है। तभी लड़की ये कह सकती है कि "उसके दो घर है"। उसको अपने लिये घर बनाने की जरूरत नही होगी। तभी सही मायनों में लड़की को सम्मान, घर मिलेगा और वो घर खुशियों से फलेगा फूलेगा।

Popular posts
चार मिले 64 खिले 20 रहे कर जोड प्रेमी सज्जन जब मिले खिल गऐ सात करोड़ यह दोहा एक ज्ञानवर्धक पहेली है इसे समझने के लिए पूरा पढ़ें देखें इसका मतलब क्या है
एक वैध की सत्य कहानी पर आधारित जो कुदरत पर भरोसा करता है वह कुदरत उसे कभी निराश नहीं होने देता मेहरबान खान कांधला द्वारा भगवान पर भरोसा कहानी जरूर पढ़ें
मत चूको चौहान*पृथ्वीराज चौहान की अंतिम क्षणों में जो गौरव गाथा लिखी थी उसे बता रहे हैं एक लेख के द्वारा मोहम्मद गौरी को कैसे मारा था बसंत पंचमी वाले दिन पढ़े जरूर वीर शिरोमणि पृथ्वीराज चौहान वसन्त पंचमी का शौर्य *चार बांस, चौबीस गज, अंगुल अष्ठ प्रमाण!* *ता उपर सुल्तान है, चूको मत चौहान
Image
उठो बहादुरने हिंद वक्त की पुकार है वो दोरे शांति गया यह वक्त शांति नहीं फतेह नसीब तुम्भी हो अकेला चीन ही नहीं यह नज्म 15/11/1962 के युद्ध में जावेद अख्तर के पिता अय्यूब हसंन मनंजर कांधला की इस नज्म का ओल इंडिया रेडियो पर प्रसारण कीया गया था
Image
शामली खेड़ी कर्मू के निशांत सैनी ने गोल्ड मेडल जीत गांव व समाज का किया नाम रोशन
Image