गन्ने की कीमत निर्धारण करने के लिए एक बार रंगराजन कमेटी गठित हुई थी। उसने अनुशंसा
की थी कि पूरी वैल्यू चैन में जो प्रोडक्ट की वैल्यू होगी उसका 70 प्रतिशत किसान को दे दिया जाए बाकी 30 प्रतिशत मिल मालिक को दे दिया जाए लेकिन इसमें शर्त थी कि ये सब बाजार आधारित मूल्य पर हो। एक कुंतल गन्ने से 11 किलो चीनी निकलती है, 30 किलो खोई और लगभग 5 किलो शीरा जिससे 95 प्रतिशत अल्कोहल वाली एक लीटर स्प्रिट बनती है। अब आप अंदाजा लगा सकते है कि इस 95 प्रतिशत अल्कोहल वाली स्प्रिट से कितने रुपए की दारू बनेगी मगर यहां पर एक झोल है । शीरा को राज्य सरकार द्वारा शीरा नियंत्रण अधिनयम द्वारा अपने काबू में कर लिया गया है। मिल को डाटा देने होते है कितना शीरा का उत्पादन हुआ। शीरा का बिक्री पर राज्य सरकार का नियंत्रण है। खुले मेंशीरा बेचना अपराध है। आइए अब थोड़ा सा गणित लगा लेते है। चीनी का थोक मूल्य 40 रुपए औसत मान लेते है।एक कुंतल से 11 किलो चीनी उत्पन्न हुई जिसका मूल्य हुआ 440 रुपया उससे किसान के हिस्से में आए 308 रुपए। 30 किलो हुई खोई जिसका मूल्य हुआ साठ रुपए वहा से किसान के हिस्से आए 42 रुपए और अभी बाकी है शीरा यदि इसको खुले बाजार में बेचा जाए ।खुले मतलब रेगुलेशन हटा दिया जाए तो कम से कम 20 रुपए किलो तो चला ही जायेगा। यानी कि वहा से भी 70 रुपया किसान के पास पहुंचेगा अगर इससे भी आगे एक स्टेप और बढ़ जाए उससे जो दारू बनती है वहां से किसान को हिस्सेदारी मिल जाए तो तो गन्ना मूल्य कहां पहुंचेगा। असली खेल ही शीरा नियंत्रण का है । और हां मैली का मूल्य भी जोड़ लेना। अब आपको समझ में आ जाना चाहिए कि गन्ने का मंत्री अलग क्यों होता है। कोई धान मंत्री या गेहूं मंत्री नही होता है।ऐसी बहुत सारी बाते है जिन्हे सार्वजनिक मंच पर लिखा नही जा सकता है। समझदार को इशारा काफी है । किसान के बालक सिर्फ जाति धर्म में उलझकर जय जय कार ही करेगे । कभी कभी पॉलिसी मैटर भी पढ़ लिया करो।46 पन्नो की रिपोर्ट इंटरनेट पर उपलब्ध है।